तेरे जुल्मो का ग़ुलाम हूँ, फिर भी तुझको आज़ाद करूं
दिल बार बार मुझसे पूछे, मैं क्या भूलूं क्या याद करूं
गुमसुम नजरे मायूसी में , हर रोज़ पनीली होती है
महबूब की बातों में उलझी, कोई डोर जो ढीली होती है
इस सन्नाटे की ख़ामोशी, आ कर चुपके से कहती है
दोराहे के तीसरी तरफ, मेरी खुशियाँ रहती है
अब बिखरे कल की कब्र पे मैं, संवरे कल की बुनियाद करूं
दिल बार बार मुझसे पूछे, मैं क्या भूलूं क्या याद करूं
बीते लम्हों की गलियों में, गुमराह करके दर बदर किया
अपने ही साए से घबराये, तनहा मुझको इस कदर किया
जो गवाह है मेरी चाहत के, जो गुजरे दिन दोहराते है
चलते चलते उन राहों पर, कुछ कदम ठहर से जाते है
मंजिल ने मुझे ठुकराया है, क्या रास्ता से फरियाद करूं
दिल बार बार मुझसे पूछे, मैं क्या भूलूं क्या याद करूं
तेरे ग़म में उम्र बिताएं हम, इस दिल में ये अरमान नहीं
तुझे जान के जान लुटाएं हम, अब इतने भी नादान नहीं
हर रात सेज पर पलकों की, फिर भी कुछ सपने जागे है
टूटे जो किस्मत का तारा, दिल अब भी तुझी को मांगे है
अपनी तबाही की नज्मो पर, अपनी जुबान से इर्शाद करूं
दिल बार बार मुझसे पूछे, मैं क्या भूलूं क्या याद करूं
Parul Singhal – India – (1984 - )
Singhal. P (2017) Emotionally Exhausted: Random Realisations. The Foolish Poet Press, Wilmslow, England. EMPTINESS. Page Number 1.