ONCE AGAIN

फिर कर बैठे खुद को मजबूर, दिल की जिद के सामने
फिर चले दर्द से यारी करने, फिर ग़म का दामन थामने

यूं तो मसरूफ किया खुद को, तेरे ख्याल से हटकर
पर डरते है कि याद तेरी, कहीं आ ना जाये पलट कर
क्यों करू रोज़ परवाह उसकी, जब अपनी कोई फ़िक्र नहीं
हर बार इबादत में उसका, आ ही जाता है जिक्र कहीं
मेरी दुआओं का साथ कभी न छोड़ा तेरे नाम ने
फिर चले……

कहाँ गयी वो राते जब, तारों संग चांदनी बांटी थी
नींदों को छोड़ सिरहाने पर, तेरे काँधे पर काटी थी
फिर देखो तुम आज सुबह, चेहरे से हटा के बालों को
एक बेदाग़ सवेरा है, भूल के गुजरे सालो को
फिर आँखों में ख्वाब सजा के अंगड़ाई ली है शाम ने
फिर चले …….

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Parul Singhal – India – (1984 - )

Singhal. P (2017) Emotionally Exhausted: Random Realisations. The Foolish Poet Press, Wilmslow, England. ONCE AGAIN. Page Number 6.

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