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SHADOW - FOOLISH POET
जिस कमी का एहसास न था उसके आने से पूरी हो गयी फ़िज़ूल लगती थी जो बातें अब कैसे इतनी जरुरी हो गयी हमें खुद से न उम्मीद कोई फिर कैसे वो आस बन गए जहान के लिए तो अब भी वही फिर कैसे उनके खास बन गए जरुरत से ज्यादा वक़्त लगा इतनी से बात समझने में एक नदी के छोर है दोनों इस गुत्थी को सुलझने में कैसे तलाश करें खुद को हम तो उसका ही साया है अब चाहे कुछ बने या बिगड़े उसका ही सरमाया है – – : Translated by . , … Continue reading →
Parul Singhal